Diabetes affects fertility: आजकल डायबिटीज के बढ़ते मामले चिंता का विषय बन गए हैं। 30 तक की उम्र में भी डायबिटीज के लक्षण वास्तव में चिंता का विषय है। यह एक पुरानी बीमारी है जो फर्टिलिटी पर भी असर डालती है। डायबिटीज पुरुष और महिला दोनों की प्रजनन क्षमता को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है। महिलाओं में डायबिटीज, स्पेशली टाइप 2, हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है जो ओव्यूलेशन और मासिक धर्म की नियमितता को प्रभावित करता है, जिससे कंसीव करना मुश्किल हो सकता है।
दरअसल, डायबिटीज से जुड़ा इंसुलिन एंड्रोजन के लेवल को बढ़ा सकता है, जो फर्टिलिटी हार्मोन को बाधित कर सकता है। पुरुषों में डायबिटीज टेस्टोस्टेरोन को कम कर सकता है और स्पर्म की क्वालिटी को कम कर सकता है, जिससे कंसीव करने की संभावना कम हो जाती है।
डायबिटीज और महिला की फर्टिलिटी क्षमता
- हार्मोनल डिस्बैलेंस और मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएँ:
स्पेशली टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, हार्मोनल संतुलन को बाधित कर सकता है, जिससे अनियमित मासिक धर्म चक्र या यहाँ तक कि मासिक धर्म भी छूट सकता है। ये अनियमितताएँ इंसुलिन और सेक्स हार्मोन की वजह से होती है, जो ओव्यूलेशन को प्रभावित कर सकती हैं।
- पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) का खतरा:
टाइप 2 डायबिटीज वाली महिलाओं में PCOS विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है, जो अनियमित ओव्यूलेशन, हाई एण्ड्रोजन वाली स्थिति है। PCOS बांझपन के प्रमुख कारणों में से एक है और क्योंकि इंसुलिन प्रतिरोध डायबिटीज और PCOS दोनों में एक भूमिका निभाता है।

- गर्भपात का जोखिम
डायबिटीज वाली महिलाओं में गर्भपात, समय से पहले प्रसव और जन्म संबंधी जटिलताओं का खतरा भी ज्यादा होता है। शुरुआती प्रेग्नेंसी में हाई ब्लड शुगर का लेवल भ्रूण में जन्मजात कमियों का खतरा बढ़ा देता है।
डायबिटीज और पुरुष की फर्टिलिटी क्षमता
पुरुषों की फर्टिलिटी को डायबिटीज की बीमारी प्रभावित करती है। इससे पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम हो सकता है, जो स्तंभन दोष (ईडी) का कारण बन सकता है। इसके अलावा, हाई ब्लड शुगर से ऑक्सीडेटिव तनाव होता है, जो शुक्राणु डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है।
ऐसे में जिन महिलाओं को डायबिटीज की समस्या है, उन्हें कंसीव करने से पहले अपने ब्लड शुगर के लेवल को यानी HbA1c आम तौर पर 6.5% से कम होना चाहिए
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