Social Media Effect On Adolescents: आजकल छोटे बच्चे भी अधिकांश समय फोन से चिपके दिखायी देते हैं। कई बार उनकी इस लत की वजह पैरेंट्स ही होते हैं, क्योंकि उनके पास बच्चों के लिए ज्यादा वक्त होता नहीं है। ऐसे में बच्चे खाने में या और किसी भी काम को करने में आना-कानी करते हैं, तो वे फोन के जरिए उनका ध्यान भटकाकर उन्हें काम में लगाने की कोशिश करती हैं। यहीं से बच्चों को फ़ोन की आदत की शुरुआत हो जाती है।
इसके अलावा आजकल बच्चों का घर से बाहर निकलना और खेलना बहुत कम हो गया है। जब बच्चे ज्यादातर समय घर में बिताते हैं और उनके पास खेलने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है, तो वे फोन पर अपना वक्त बिताते हैं। ऐसे में बचपन से ही फोन की लत लगना जाहिर है। वो फ़ोन पर वीडियो और रील्स देखते रहते हैं। बचपन में ही सोशल मीडिया की लत लगने से बच्चों को आगे जाकर परेशानी हो सकती है। यूसीएसएफ बेनिओफ़ चिल्ड्रेन हॉस्पिटल्स के डॉ. जेसन नागाटा के नेतृत्व में हुए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 1 से 11 साल के बच्चों में सोशल मीडिया की लत परेशानी पैदा करने वाली है।
क्या कहती है स्टडी
यह अध्ययन 11 से 15 वर्ष की आयु के टीनएजर्स पर किया गया था। इसमें पाया गया कि उनमें से 67% पहले से ही टिकटॉक पर एक प्रोफ़ाइल मैनेज कर रहे थे। जबकि YouTube और इंस्टाग्राम पर 65% और 66% बच्चे एक्टिव थे।

यूसीएसएफ बेनिओफ चिल्ड्रेन हॉस्पिटल्स के बाल रोग विशेषज्ञ और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. जेसन नागाटा ने एक बयान में कहा, “पॉलिसी मेकर्स को टिकटॉक को एक सिस्टमैटिक सोशल मीडिया इश्यू के रूप में देखने और बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए प्रभावी उपाय बनाने की जरूरत है। टिकटॉक बच्चों के लिए सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, फिर भी बच्चों ने इंस्टाग्राम और स्नैपचैट सहित तीन से अधिक अलग-अलग सोशल मीडिया अकाउंट होने की सूचना दी है।”
शोधकर्ताओं ने सभी बच्चों के बीच सोशल मीडिया के उपयोग में काफी जेंडर अंतर भी देखा। फीमेल टीनएजर्स टिकटॉक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम और पिनटेरेस्ट में ज्यादा इंटरेस्टेड थीं, जबकि मेल टीनएजर्स ने यूट्यूब और रेडिट के प्रति अधिक रुचि दिखाई। यह डिजिटल विभाजन इस बात को प्रभावित कर सकता है कि टीनएज में बच्चों का विकास कैसे होता है और जेंडर के बीच लिंगों के बीच सोशलाइजेशन कैसे विकसित होता है।
इसके अलावा, अध्ययन के रिजल्ट में चिंताजनक निष्कर्ष भी सामने आए, जब 6.3% युवा सोशल मीडिया यूजर्स ने अपने माता-पिता से छिपकर अकाउंट बनाने की बात एक्सेप्ट की। इस स्टडी में सोशल मीडिया के प्रॉब्लमैटिक यूज और इससे लगने वाली लत से व्यवहार में होने वाले बदलाव को भी देखा गया। सोशल मीडिया अकाउंट वाले 25% बच्चों ने बताया कि वे अक्सर अपने सोशल मीडिया इंटरैक्शन के बारे में सोचते रहते हैं, जबकि अन्य 25% ने कहा कि वे अपनी समस्याओं को भूलने के लिए ऐप का उपयोग करते हैं।

इसके अलावा, 17% यूजर्स ने बताया कि वे अपने सोशल मीडिया उपयोग को कम करने में असमर्थ हैं और 11% प्रतिभागियों ने कहा कि अत्यधिक सोशल मीडिया एक्सपोजर ने उनके स्कूल के काम को प्रभावित किया है।
स्टडी से ये तो साफ है कि फोन का उपयोग बच्चों की ज़िंदगी को पूरी तरह से प्रभावित करता है। इससे बच्चे अपने परिवार, दोस्तों और पढ़ाई से ज्यादा सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताते हैं, जो बच्चे के ओवरऑल विकास के लिए अच्छा नहीं है।
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